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Wednesday 9 July 2014

वो चन्दन !


आज एक मीठी किलकारी सुनी
चौंक उधर को पलटी
एक बंजर कोने में खिलती खुशबू
महका गयी अंतरमन

वीरान कोने में खड़ा अकेला
वो चन्दन का वृक्ष
आधा सुखा आधा हरा
करे इंतज़ार गिरने का

कभी गूंजा करती थी वो खंडहर हवेली
अनगिनत स्वरों से
आज चिड़िया भी घबराती है
रुख उधर का करने को

माँ-दादी के दामन में छुप कर
बितायी पुरे बचपन की उमर
घने हरे पेड़ के साये को
तरसी सारी उमरिया

उस सूखे चन्दन में देख
छवि अपने जीवन की
माँ के आँसू का जाना मोल
दर्द का न था कोई तोल

जीवन के कड़े थपेलों
ने किया चन्दन को खोखला
गिरा धम्म से हलके झोके पे
खत्म हुआ उसका खेल

बरसों बाद आज वहाँ
दिखी फिर हरियाली है  
उग आई है आशा की

एक नयी किरण !! 

~०९/०७/२०१४~